17-12-2021 प्रात:मुरली मधुबन
ओम् शान्ति
"बापदादा"
"मीठे बच्चे - संगमयुग पुरुषोत्तम युग है, यहाँ की पढ़ाई से 21 जन्मों के लिए तुम उत्तम ते उत्तम पुरुष बन सकते हो''
प्रश्नः- आन्तरिक खुशी में रहने के लिए कौन सा निश्चय पक्का होना चाहिए?
उत्तर:- पहला-पहला निश्चय चाहिए कि हम विश्व के मालिक थे, बहुत धनवान थे। हमने ही पूरे 84 जन्म लिए हैं। अब बाबा हमको फिर से विश्व की बादशाही देने आये हैं। अभी हम त्रिकालदर्शी बने हैं। रचता बाप द्वारा रचना के आदि-मध्य-अन्त को हमने जाना है। ऐसा निश्चय हो तब आन्तरिक खुशी रहे।
गीत:- नयन हीन को राह दिखाओ प्रभू......
बाइसकोप देखना बहुत खराब है। अखबार में भी पड़ा था कि फिल्म देखने जाना गोया नर्क में जाना। जितना बड़े आदमी होते हैं उतना ही गंद जास्ती करते हैं। इस समय पूरा वेश्यालय है। बाप आकर शिवालय बनाते हैं। सारा मदार है पवित्रता पर। प्योरिटी है तो पीस और प्रासपर्टी भी है। रावण राज्य में कोई पवित्र हो नहीं सकता। यहाँ ही युद्ध की बात है। योगबल से ही तुम रावण पर विजय पाते हो। यहाँ कितने ढेर मन्दिर हैं। परन्तु बायोग्राफी किसकी भी नहीं जानते। शिव के मन्दिर में जाकर पूछो शिव की बायोग्राफी बताओ तो कुछ बता नहीं सकेंगे। तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार ज्ञान को जानते हैं। उत्तम, मध्यम, कनिष्ट तो होते हैं। सारा मदार है पढ़ाई पर। आत्मा कहती है हम तो नर से नारायण बनेंगे। पढ़ाता तो सबको राजयोग हूँ, परन्तु फिर भी पुरूषार्थ अनुसार उत्तम, मध्यम, कनिष्ट बनते हैं इसलिए बच्चों को पढ़ाई पर बहुत ध्यान देना चाहिए। शिव भगवानुवाच कि योग अग्नि से तुम्हारे पाप भस्म हो जायेंगे और सतोप्रधान बन जायेंगे इसलिए बच्चे याद की यात्रा को भूलो मत। अपनी दिल से पूछो कि हम प्रदर्शनी में ज्ञान तो बहुत अच्छा समझाते हैं परन्तु याद की यात्रा में रहते हैं? याद में फेल हैं इसलिए वह अवस्था, वह खुशी कायम नहीं रहती। इस सब्जेक्ट में बच्चों को अभ्यास बढ़ाना चाहिए। चित्र भी ऐसे शोभनिक बनाने चाहिए जो कोई भी आकर पढ़ने से ही नॉलेज समझ जाए। अच्छी चीज़ होगी तो देखने बहुत आयेंगे। इन चित्र बनाने वालों को कितना इनाम मिलता है। देवताओं के चित्रों को खास पुराना करके बेचते हैं। तो मनुष्यों को बहुत पसन्द आते हैं। बहुत पैसे देकर भी खरीद करते हैं। देवतायें सतोप्रधान थे तो उन्हों के चित्रों का भी कितना मान है। परन्तु यह नहीं जानते कि भारत ही पुराने ते पुराना है। सबसे पुराने से पुराना है - शिवबाबा। पहले-पहले शिव ही आते हैं। मनुष्य तो मूँझे हुए हैं। तुम भी अभी समझते हो कि पहले हम तुच्छ बुद्धि थे। अब क्या से क्या बन गये हैं। हम विश्व के मालिक थे, बहुत धनवान थे। परन्तु तुम्हारे में भी निश्चय बुद्धि थोड़े हैं। नहीं तो बच्चों को आन्तरिक खुशी होनी चाहिए कि वाह हमने तो पूरे 84 जन्म लिए हैं। कम पढ़ने वालों को कम जन्म मिलेंगे। जो सूर्यवंशियों में आयेंगे उन्होंने जरूर अच्छी पढ़ाई की होगी। यह पढ़ाई कितनी अच्छी है। रचता बाबा ही आकर रचना के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज देते हैं। तुम त्रिकालदर्शी बनते हो। कोई से पूछो तुम त्रिकालदर्शी हो। तीनों ही कालों का तुमको ज्ञान है। तो कहेंगे यह सब कल्पना है। किसी एक ने कहा तो और भी कहते रहेंगे। अब तुम्हारी बुद्धि में सारा ज्ञान है। और परमात्मा बाप है, यह भी तुम जानते हो। गीता में लिखा है कि परमात्मा का रूप तो हजारों सूर्य से भी तेजोमय है। परन्तु ऐसा है नहीं। बाबा तो बिल्कुल शीतल है। बच्चों को भी आकर शीतल बनाते हैं। जैसे बाबा ज्योति बिन्दू है वैसे आत्मा भी ज्योति बिन्दू है। जैसे फायरफ्लाई होता है, वह तो देखने में आता है। बाबा तो दिव्य दृष्टि बिना देखने में नहीं आता है। तुम जानते हो परमात्मा ज्ञान का सागर है। तुम बच्चे भी मास्टर ज्ञान सागर बन रहे हो। आत्मा कितनी छोटी है, उनमें सारी नॉलेज भरी हुई है। आत्मा ही सुनती है, आत्मा ही धारण करती है, आत्मा ही शरीर द्वारा समझाती है। यह बातें कोई को भी समझाने आयेंगी नहीं। तुम भी बाप द्वारा समझ और समझा सकते हो। परमपिता परमात्मा ही पतित-पावन, ज्ञान का सागर है। कृष्ण को पतित-पावन वा ज्ञान का सागर नहीं कह सकते हैं। बुलाते भी एक को हैं कि हे पतित-पावन आओ, न कि कृष्ण व राम को कहते हैं। सीता का राम कोई पतित-पावन था क्या? तुम सब भक्तियां हो, भगवान एक है। तुम सब ब्राइड्स हो, मैं तुम्हारा ब्राइडग्रुम हूँ। मैं आता हूँ तुम्हारा श्रृंगार कराने। सभी आत्माओं को मैं आकर भक्ति का फल भी देता हूँ। यह पढ़ाई कितनी बड़ी है, नर से नारायण बनाती है। कितना नशा होना चाहिए। बाप आये ही हैं अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देने। यह है अच्छे ते अच्छा दान। शिव के आगे जाकर कहते हैं झोली भर दो। तुम्हारी बुद्धि में अभी सारा ज्ञान है कि हम ही अब संगम पर हैं। हमको शिवबाबा विष्णुपुरी का मालिक बनाते हैं। अब हम ब्राह्मण हैं फिर हम देवता बनेंगे, फिर क्षत्रिय, वैश्य शूद्र बनेंगे। यह है हम सो, सो हम का राज़। मनुष्य कहते हैं आत्मा सो परमात्मा। बाप समझाते हैं हम सो पूज्य, हम सो पुजारी कैसे बनते हैं। सतोप्रधान सतो, रजो, तमो में कैसे आते हैं। इस राज़ को तुम ही जानते हो। यह धारणा करने की बातें हैं। इस पढ़ाई से कितनी बेहद की राजधानी स्थापन हो रही है। तुम पढ़ रहे हो भविष्य 21 जन्मों के लिए, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। कोई राजा कोई रानी, कोई प्रजा जाकर बनेंगे। वहाँ सबको सुख ही सुख है। यहाँ तो कर्मों अनुसार दु:ख मिलता है। यह है ही दु:खधाम, वह है सुखधाम।
अब बाबा कहते हैं बच्चे ऐसा कोई बुरा काम मत करो, जिसकी सज़ा खानी पड़े। अगर फिर भी ऐसे कर्म करते हैं तो पद भी ऐसा मिलेगा। अगर अच्छी तरह पढेंगे तो कल्प कल्पान्तर की प्रालब्ध बन जायेगी। अभी यह ज्ञान है फिर प्राय:लोप हो जायेगा। अभी तुम पुरूषार्थ नहीं करेंगे तो बहुत पछतायेंगे। बाप कहते हैं - दैवीगुण धारण करो नहीं तो कर्म-विकर्म हो जायेंगे। यहाँ सब मनुष्यों के कर्म, विकर्म बनते हैं। यह तुम्हारे सिवाए कोई जानते ही नहीं। गीता का भगवान कब आया? यह कोई बता न सके। कहते हैं द्वापर में आया - वेद शास्त्र बने ही द्वापर में हैं और द्वापर में ही आसुरी सम्प्रदाय हो गये। बच्चे कहते बाबा हमको इस पाप की दुनिया से ले चलो। गोया मौत मांगते हो इसलिए उनको कालों का काल कहा जाता है। उन लोगों ने सिर्फ नाम रख दिया है अकाल तख्त। परन्तु अर्थ कुछ नहीं समझते। जो बहुत ऊंच बनते हैं, वही आकर नीचे भी गिरते हैं। तुम बच्चों को अब यह ज्ञान सारा समझ में आया है। यह बहुत वन्डरफुल ज्ञान है। रचना के आदि मध्य अन्त का ज्ञान कोई दे न सके। नहीं तो निराकार को नॉलेजफुल कहने से फायदा ही क्या। जब तक वह आकर ज्ञान न देवे। सब आत्मायें निराकारी दुनिया से यहाँ आकर पार्ट बजाती हैं। अब भगवान को बुलाते हैं, उनको अपना शरीर तो है नहीं। बाकी सब आत्माओं को अपना-अपना शरीर है। तो भगवान एक ही निराकार हुआ ना। बाप कहते हैं - मेरा नाम है शिव। मैं इनके शरीर में इनकी भ्रकुटी में आकर बैठता हूँ। जैसे आत्मा आरगन्स द्वारा बात करती है वैसे बाबा भी इनके आरगन्स द्वारा समझाते हैं। गाया भी हुआ है भ्रकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा। अब इन गुह्य राज़ों को तुम ही जानते हो। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1. अपनी ऊंची प्रालब्ध बनाने के लिए पढ़ाई अच्छी तरह पढ़नी है। कोई भी बुरा काम नहीं करना है।
2. अपना खान-पान बहुत शुद्ध रखना है। देवताओं को जो चीज़ स्वीकार कराते हैं, वही खानी है। पुरुषोत्तम बनने का पुरुषार्थ करना है।
वरदान:- त्याग, तपस्या द्वारा सेवा में सफलता प्राप्त करने वाले सर्व के कल्याणकारी भव
जैसे स्थूल अग्नि दूर से ही अपना अनुभव कराती है, ऐसे आपकी तपस्या और त्याग की झलक दूर से ही सर्व को आकर्षित करे। सेवाधारी के साथ-साथ त्यागी, तपस्वीमूर्त बनो तब सेवा का प्रत्यक्षफल दिखाई देगा। त्यागी अर्थात् कोई भी पुराने संकल्प वा संस्कार दिखाई न दें। तपस्वी अर्थात् बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से सिवाए आत्मिक स्वरूप के और कुछ भी दिखाई न दे। जो भी संकल्प उठे उसमें हर आत्मा का कल्याण समाया हुआ हो तब कहेंगे सर्व के कल्याणकारी।
स्लोगन:- देह-भान से पार जाने के लिए चित्र को न देख चेतन और चरित्र को देखो।
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